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लेखनी प्रतियोगिता -08-Oct-2022 हाउसवाइफ : अहमियत

हाउसवाइफ  : अहमियत 


आज "छमिया भाभी" बड़ी खुश नजर आ रही थीं । खुश हों भी क्यों नहीं आखिर चार महीने हिल स्टेशनों पर मौज मस्ती करके आयीं थीं । उनके अंग अंग से आनंद की मंदाकिन बह रही थी । इतना प्रसन्न कभी देखा नहीं था पहले उन्हें । चाल भी बता रही थी कि वे अपने आपे में नहीं हैं आज । आज तो पार्क के नसीब जाग गये । इतने दिनों तक अमावस की रात की तरह तनहाइयों में डूबा पड़ा था बेचारा पार्क । और सुबह की सैर करने वाले तो विटामिन ए के अभाव में वेंटिलेटर पर ही चले गये थे । आज जैसे ही छमिया भाभी ने पार्क में कदम रखा तो पार्क की रौनक देखने लायक थी । लोग वेंटिलेटर से उठ उठकर दौड़े चले आये । दरअसल छमिया भाभी से बड़ी संजीवनी बूटी कहीं और है ही नहीं । उनसे न जाने कितने लोग जीवन पा रहे हैं । सब मुर्दा चेहरों में जान आ गयी थी । 

इससे पहले कि हम आगे बढकर छमिया भाभी का स्वागत करते, रसिक लाल जी एक बहुत बड़ा "बूके" लेकर लगभग दण्डवत मुद्रा में झुककर प्रणाम करते हुए बोले 
"तुम बिन एक पल कैसे बीता , पूछो न बस हमसे । 
जान हमारी अटकी रही बस, मर न सके कसम से " ।। 

रसिक लाल जी लच्छेदार बोली बोलने में उस्ताद हैं । उनके इसी गुण के कारण मौहल्ले की सब औरतें उन्हें पसंद करती हैं । वे एक मिनट में ही हर किसी को भाभी, चाची बना लेते हैं । उनके चेहरे से प्यार और होठों से शहद टपकता है । भगवान ने शायद सभी "रसिकलालों" को ऐसा ही बनाया है इसीलिए इनके चारों ओर "तितलियां" मंडराती रहती हैं । चूंकि ये लोग अपने शरीर पर शहद लिपटा कर रखते हैं इसीलिए कुछ तितलियां उस शहद से चिपक भी जाती हैं । वो तो जब अपने आसपास अन्य तितलियों को चिपटे हुए देखती हैं तो उन्हें अहसास होता है कि वे गलत जगह पर चिपक गई हैं । मगर शहद की ताकत उन्हें वहां से उड़ने नहीं देती हैं और आखिर में वे परिस्थित से समझौता कर लेती हैं और वहीं चिपकी पड़ी रहती हैं । ऐसे में रसिकलाल जी अपनी शेखर बघारते रहते हैं कि उनके पास "इतनी" तितलियां हैं और हम जैसे "स्पष्टवादी" "सूखे" की मार झेलते हुए "अकाल मृत्यु" को प्राप्त होते रहते हैं । 

छमिया भाभी ने कनखियों से हमें देख लिया था । तुरंत हमारी ओर मुखातिब होकर बोलीं 
"अरे भाईसाहब आप ! कब आये ? कैसे हैं ? कुछ दुबले लग रहे हैं" । 

अब उन्हें कैसे बतायें कि 
"याद में तेरी जाग जाग के हम , रात भर करवटें बदलते रहे ।
तन्हाई में दिल थाम के हम गम के आंसुओं को रोज पीते रहे" । 

पर हम रसिकलाल नहीं हैं । 
"हमें शायद इश्क जताना नहीं आता 
हंस हंस कर दुखड़ा सुनाना नहीं आता 
लब हैं कि शर्म से कुछ कह न सके 
आंखों से बयां करना नहीं आता" 

बस इतना ही कह सके कि जबसे आप गई हैं तब से ही तबीयत कुछ ठीक नहीं रही , इसीलिए थोड़े कमजोर से लग रहे हैं । पर आप आज इतनी खुश लग रही हैं कि खुशी नदी बनकर आपके चेहरे से बह रही है । ऐसी क्या खास बात है जरा हम भी तो सुनें ? 
"दुनिया ने तो हम हाउस वाइव्ज की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया, भाईसाहब । हमें हमेशा ही "कामवाली बाई" ही समझा है । सास ने "दहेज की फैक्ट्री" तो ननद ने "लड़ने का साधन" समझ कर हमेशा ही हमें दुत्कारा है । पति ने तो "सिर दर्द" समझ कर हमेशा ही हमारा उपहास उड़ाया है । मगर एक "प्रतिलिपि" जी ही हमारी मनस्थिति समझ पाईं जिन्होंने आज का विषय हमारे जैसी हाउस वाइव्ज के लिये समर्पित कर हमारा मान सम्मान बढाया है । बस, इसी से चेहरे पर बहार आ गयी है" । 

छमिया भाभी की बातों पर मुझे मन ही मन बहुत हंसी आ रही थी कि प्रतिलिपि ने तो बड़ी चतुराई से हाउस वाइव्ज को "कामवाली बाई" की श्रेणी से भी बदतर श्रेणी में रख दिया है । कामवाली बाई के तो घंटे फिक्स हैं कम से कम पर हाउसवाइफ के तो वो भी नहीं हैं । और आजकल कामवाली बाई तो किसी के बाप की भी नहीं सुनती हैं । एक दिन हमारे पड़ोस में रहने वाले 'नुक्ताचंद' जी ने कामवाली बाई से बस इतना सा कह दिया कि बर्तन जरा ढंग से साफ किया करो , इसमें साबुन रह गया है । बस इतना सा कहते ही उसने तूफान खड़ा कर दिया । नुक्ताचंद जी की श्रीमती जी ने नुक्ताचंद जी की खूब लानत मलामत की मगर इससे कामवाली बाई संतुष्ट नहीं हुई और उसने हुक्म सुना दिया कि इस घर में दोनों में से एक ही आदमी रह सकेगा । या तो वह रहेगी या फिर नुक्ताचंद जी । श्रीमती जी के पास अब कोई विकल्प शेष नहीं था । बेचारी को तलाक लेना पड़ा अपने पति से । कामवाली बाई को हटाने का जोखिम उठाने की हिम्मत नहीं थी उनमें । 

मैंने विषय बदलते हुए कहा "आप कल ही तो आई हैं भाभी , थकी होंगी , आज पार्क में आने की जहमत क्यों उठाई आपने" ? 
"आप सच कह रहे हैं भाईसाहब, थकान तो बहुत थी कल । पर,आपके भाई यानि मेरे पतिदेव भुक्कड़ सिंह जी माने ही नहीं और वे रात भर मेरे पैर दबाते रहे । सुबह एकदम तरो ताजा महसूस हुआ तभी मैं आई हूं यहां पर" 
"चलो शुक्र है कि आपको कुछ राहत तो मिली वरना रात को खाना बनाने में भी तो परेशानी आई होगी न आपको" ? 
"कौन जमाने की बात कर रहे हो भाईसाहब ? आजकल कौन औरत खाना बनाती है अपने घर में ? ये जोमेटो और स्विग्गी इसीलिए तो करोड़ों का व्यवसाय कर रही हैं कि खाना बनाना बंद कर दिया है आजकल गृहणियों ने । फिर इतने सारे रेस्टोरेंट भी तो खुले हुए हैं । कोई पंजाबी खाने का तो कोई साउथ इंडियन । कोई गुजराती तो कोई बंगाली । सबको टेस्ट करने में एक महीना तो लग ही जाता है तब जाकर नंबर आता है दुबारा किसी रेस्टोरेंट का । पर एक बात तो है कि खाने का आनंद आ जाता है" 
"हां, वो बात तो है । पर कपड़े तो धोने पड़े होंगे ना कल । आखिर इतने दिनों के पड़े होंगे न" ? 

इस बात पर वे बहुत जोर से हंसी । कहने लगीं "आजकल ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन आने लगी हैं जिनमें गंदे कपड़े डालो और साफ कपड़े बाहर निकालो । कुछ काम नहीं करना पड़ता हमको । बस, कपड़े डालने और निकालने का काम ही है और इसके लिए आपके भाईसाहब हैं न" 

मैं आश्चर्य में पड़ गया । बर्तन झाड़ू पोंछा यानि बी जे पी के लिए कामवाली बाई है, खाने के लिए जोमेटो वगैरह हैं , कपड़ों के लिए मशीन है फिर 24 घंटे की नौकरी ? कुछ समझ नहीं आया ? मेरी दुविधा वे समझ गई थीं इसीलिए बोली "आप समझ रहे होंगे कि फिर हमारे पास काम क्या है" ? क्यों है ना" ? 

मैं ऐसे सकपकाया जैसे किसी चोर की चोरी पकड़ी गई हो । बस इतना ही कह पाया कि "नहीं नहीं भाभी, ऐसी बात नहीं है" 
"मुझे सब पता है कि आप यही सोच रहे हैं । पर आपको क्या पता कि हम लोग दिन भर किस तरह व्यस्त रहती हैं । आधा समय तो हमारा अपने पतिदेव, सास, ननद वगैरह की बुराई करने में निकलता है । पति पर निगाह रखने में जाता है । कामवाली बाई की हरकतों पर जाता है । मौहल्ले के समाचार लेने देने में जाता है । थोड़ा बहुत समय "घर तोड़ू धारावाहिक" और कॉमेडी के नाम पर "वाहियात शो" देखने में जाता है । जो थोड़ा बहुत समय बचता है वह मेकअप करने, बाल रंगने में चला जाता है । अब आप ही बताओ कि हम लोग 24 घंटे काम करती हैं कि नहीं" ? 

मैं भी लोहा मान गया उनके कामों का । वाकई काम के बोझ से दबी जा रही हैं वे । सच में नमन है सभी ऐसी महान महिलाओं को । 

श्री हरि 
8.10.22 


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6 Comments

Rajeev kumar jha

07-Jan-2023 07:57 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

08-Jan-2023 08:32 AM

धन्यवाद जीष

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Hari Shanker Goyal "Hari"

08-Jan-2023 08:31 AM

धन्यवाद जी

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Mahendra Bhatt

08-Oct-2022 09:37 AM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

08-Oct-2022 09:48 AM

धन्यवाद आदरणीय । आपकी समीक्षा से यह रचना धन्य हो गई । आशीर्वाद बनाए रखियेगा आदरणीय । 🙏🙏

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